केतु ग्रह के प्रभाव (Ketu Greh Ke Prabhav)
केतु एक छाया ग्रह है जो की मनुष्य के शरीर में अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। केतु मंडल ध्वजाकार है और सूर्य और चन्द्रमा शत्रु हैं। यह एक ऊष्ण और तमोगुणी ग्रह है। केतु को मीन राशि का स्वामी ग्रह माना जाता है। केतु मीन और धनु राशि में उच्च का होता है और जातक को शुभ प्रभाव प्रदान करता है। केतु के देवता भगवान गणेशजी है। यह जन्म कुण्डली में १,६,८ और ११वें भाव में शुभ नहीं माना जाता है। कुण्डली में केतु ग्रह के द्वारा जब जातक पीड़ित रहता है तो जातक के व्यवहार में विकारता दिखाई देने लगती है। जातक के मन दुराचार की भावना प्रबल हो जाती है। यह वात कफ जन्य रोग से जातक को पीड़ित रहता है। कुण्डली में जिस भी भाव में केतु रहता है उसी भाव के अनुरूप केतु अपना अच्छा और बुरा प्रभाव अवश्य डालता है। जीवन को संघर्षमय बना देता है। केतु के कुप्रभाव से जोड़ों में दर्द, सन्तान उत्पति में रुकावट, संतान कष्ट,पारिवारिक कलह,पेशाब संबधित विकार, जेल यात्रा, चिंता, कलह कलेश, मानसिक कष्ट, दमा,कान के रोग, रीढ़ के रोग, घुटने के रोग, लिंग सम्बन्धी रोग, किडनी के रोग, जोड़ के रोग अदि से जातक पीड़ित रहता है। केतु के अच्छा होने से व्यक्ति पद, प्रतिष्ठा और संतानों का सुख उठाता है और रात की नींद चैन से सोता है। इसलिए कुंडली में केतु की अगर अशुभ स्थिति हो तो तुरंत किसी अच्छे विद्वान से कुण्डली का विश्लेषण करवा कर उपचार करें अन्यथा व्यक्ति को भयानक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। आइए जानते हैं केतु की कुंडली में अन्य ग्रहों से युति से क्या फल मिलता है।
- यदि कुण्डली में केतु और सूर्य ग्रह की युति होने पर यह ग्रहण दोष बनता है। इस दोष से कटक को व्यवसाय में उतार चढ़ाव देखने को मिलता है। जातक के पिता के स्वास्थ्यपर बुरा असर पड़ता है। यश सम्मान, प्रतिष्ठा और सुख में कमी आती है।
- यदि केतु चन्द्रमा के साथ युति बनाये तो यह एक ग्रहण दोष को निर्मित करता है। इस दोष से मानसिक तनाव बढ़ता है। इस स्थिति में माता का स्वस्थ्य ख़राब रहेगा। डिप्रेशन का रोग अधिकतक इसी स्थिति में होता है।
- यदि केतु और मंगल की युति हो तो जातक के अंदर क्रोध की अधिकता, हिंसा की प्रवृति दिखाई देने लगती है।
- यदि केतु और बुध की युति हो तो जातक के अंदर कपट की भावना बढ़ने लगती है और जातक धर्म कर्म से हीन होकर नास्तिक बन जाता है।
- यदि केतु और गुरु की युति हो तो जातक के अंदर सत्वगुण में कमी आने लगती है। जिससे जातक में नास्तिकता बढ़ने लगती है।
- यदि केतु और शुक्र की युति हो तो जातक के अंदर स्त्री लोलुपता की भावना बढ़ने लगती है।
- यदि केतु और शनि की युति हो तो जातक के अंदर हिंसक प्रवृत्ति बढ़ने लगती है और जातक आत्मघाती भी बनने लगता है। यह युति कारगर योग को भी निर्मित करती है।
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