जानिए कुंडली में दुर्घटना के योग (Janiye Kundli Mein Durghatna Ke Yog)

          दुर्घटना के नाम से ही व्यक्ति की आत्मा कांप जाती है। भले ही थोड़ी सी चोट लगी हो परन्तु जब हम एक्सीडेंट का नाम ही सुनते हैं तो ऐसा लगता है मानो कोई बहुत भयानक दृश्य है। जैसे जन्म कुंडली में वाहन सुख का योग देख कर यह जाना जा सकता है क कोनसा समय वाहन खरीदने के लिए शुभ है, वैसे ही कुंडली में दुर्घटना का योग देख कर इससे बचा जा सकता है। आज कल के तेज तरार जीवन में यहाँ कई प्रकार के एडवेंचर और तेज रफ्तार से वाहन चलाना आम हो गया है, वहीँ दुर्घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है। वाहन से दुर्घटना के योग हेतु शुक्र उत्तरदायी होता है। लोहा या मशीनरी से दुर्घटना के योग हेतु शनि उत्तरदायी होता है। आग या विस्फोटक सामग्री से दुर्घटना के योग हेतु मंगल उत्तरदायी होता है। चौपायों से दुर्घटनाग्रस्त होने पर शनि उत्तरदायी होता है। वहीं अकस्मात दुर्घटना के लिए राहु उत्तरदायी होता है। आइए जानते हैं कुंडली में कुछ ऐसे योग जो जातक की दुर्घटना के कारक होते हैं।

  • यदि तृतीयेश एवं अष्टमेश की एक दुसरे में दशा-अन्तर्दशा चलती है तो वाहन दुर्घटना का योग बनता है ।
  • यदि अष्टमेश के साथ द्वादश भाव में राहु होकर लग्नेश के साथ सम्बन्ध बना रहा हो तो हवाई दुर्घटना की आशंका रहती है।
  • यदि षष्ठ भाव में शनि शत्रु राशि या नीच का होकर केतु के साथ हो तो पशु द्वारा चोट लगती है।
  • यदि केंद्र का स्वामी, लग्न, अष्टम भाव मजबूत है मगर तीसरा भाव या उसका स्वामी कमजोर हो तो वाहन के साथ छोट‍ी-मोटी टूट-फूट हो सकती है, व्यक्ति को भी छोट‍ी-मोटी चोट लग सक‍ती है।
  • यदि द्वादशेश चंद्र लग्न के साथ हो व द्वादश में कर्क का राहु हो तो अकस्मात मृत्यु योग देता है।
  • यदि कुंडली का चतुर्थ भाव तथा दशम भाव पीड़ित हो तो जातक की दुर्घटना होने की संभावना रहती है।
  • यदि षष्ठ भाव में मंगल हो व शनि की दृष्टि पड़े तो मशीनरी से चोट लग सकती है।
  • यदि लग्न व केंद्र का स्वामी दोनों पाप प्रभाव में हो, तीसरा भाव खराब हो मगर अष्टम भाव मजबूत हो तो दुर्घटना तो होती है, मगर जान को खतरा नहीं रहता।
  • यदि अष्टम भाव में मंगल शनि के साथ हो या शत्रु राशि का होकर सूर्य के साथ हो तो आग से खतरा हो सकता है।
  • यदि शनि, चंद्रमा और मंगल क्रम अनुसार दूसरे, चतुर्थ व दसवें भाव में हों तो वाहन से गिरने से बुरी दुर्घटना होती है।
  • यदि कुंडली में लग्नेश कमजोर होकर अष्टमेश के साथ छठे भाव में राहु, केतु या शनि के साथ स्थित हो तो गंभीर रुप से दुर्घटनाग्रस्त होने के योग बनते हैं.
  • यदि सप्तमेश के साथ मंगल-शनि हों तो दुर्घटना के योग बनते हैं।
  • यदि शनि-मंगल-केतु अष्टम भाव में हों तो वाहनादि से दुर्घटना के कारण चोट लगती है।
  • यदि जन्म कुंडली में सूर्य तथा बृहस्पति पीड़ित हों और इन दोनो का संबंध त्रिक भाव के स्वामियों से बन रहा हो तो वाहन या हवाई दुर्घटना होने की संभावना रहती है.
  • यदि अष्टम भाव व तीसरा भाव कमजोर हो तो भयंकर दुर्घटना के योग बनते हैं जिससे जान पर भी बन सकती है।
  • यदि वायु तत्व की राशि में चंद्र, राहु हो व मंगल देखता हो तो हवा में जलने से मृत्यु भय रहता है।
  • यदि चंद्रमा नीच का हो व मंगल भी साथ हो तो जल से सावधानी बरतना चाहिए।
  • यदि शनि खराब हो तो दुर्घटना में पैरों पर चोट देता है।
  • यदि मंगल ख़राब हो तो सिर पर चोट लगती है।
  • यदि मंगल-शनि-केतु सप्तम भाव में हों तो उस जातक के जीवनसाथी की ऑपरेशन,आत्महत्या या घातक हथियार से मृत्यु हो सकती है।
  • यदि अष्टम में मंगल-शनि वायु तत्व में हों तो जलने से मृत्यु हो सकती है।

दुर्घटना योग जातक की कुंडली में ग्रह चाल (महादशा, अन्तर्दशा, प्रतिअंतरदशा अदि) या ग्रह युति से बनता है इस लिए किसी विशेषज्ञ को अपनी कुंडली समय समय पर दिखाते रहें।

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

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