कालसर्प योग (Kaal Sarap Yog)

          कालसर्प एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के दुष्कर्मो के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी जन्म कुंडली में आता है। यह दोष ४८ साल तक व्यक्ति को आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान करता है। मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है जैसे कि संतान होने में बाधा आना यदि हो जाए तो बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। इस दोष के कारन रोजी-रोटी की व्यवस्था भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है और दिन प्रतिदिन गरीबी बढ़ती जाती है। जातक को आजीविका के लिए अपने जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है। इस दोष से पीड़ित जातक को अधिकतर घूमने फिरने की नौकरी अदि से ही लाभ प्राप्त होता है। आइए अब जानते हैं कि कालसर्प योग कैसे बनता है।

राहू तथा केतु दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों तो ‘कालसर्प’ दोष बनता है। कुंडली में बनने वाला कालसर्प कितना दोषपूर्ण तथा बलशाली है यह राहू और केतु की अशुभता के साथ साथ किस भाव में कौन सी राशि स्थित है और उसमें कौन-कौन से ग्रह कहाँ बैठे हैं और उनका बलाबल कितना है इन सब बातों निर्भर करता है। यहाँ कालसर्प योग जातक की कुंडली में बने दोषों के प्रभाव को बढ़ाता है वहीँ शुभ योगों के फल कम करता है। अगर जातक की कुंडली के भावों में सारे ग्रह दाहिनी ओर इकट्ठा हों तो यह कालसर्प योग नुकसानदायक नहीं होता। जब सारे ग्रह बाईं ओर इकट्ठा रहें तो वह नुकसानदायक होता है। कालसर्प योग वाले सभी जातकों पर इस योग का समान प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए कालसर्प योग से भयभीत न हो कर इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करवाकर इसके सरे प्रभावों की विस्तृत जानकारी हासिल कर लेना आवश्यक है। जब असली कारण ज्योतिषीय विश्लेषण से स्पष्ट हो जाये तो तत्काल उसका उपाय करना चाहिए।
कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं।

१. अनन्त कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातक को व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। जातक के वैवाहिक जीवन में कई उतार चढाव आते हैं। मानसिक कष्ट इन्हें घर गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाते हैं। लाटरी, सट्टा, शेयर अदि में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं किंतु इसमें भी इन्हें हानि ही होती है। जातक को अपने माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट सम्बन्धिओं के कारन कई प्रकार के षड़यंत्रों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है। जातक को बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन इन सब के बाद भी जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है। सम्पूर्ण समस्याओं के बाद भी जरुरत पड़ने पर किसी चीज की इन्हें कमी नहीं रहती है। यह किसी का बुरा नहीं करते हैं।

   २. कुलिक कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक कालसर्प योग होगा। ऐसे जातक को अपयश का भागी बनना पड़ता है। जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है। मित्रों द्वारा धोखा, संतान सुख में बाधा और व्यवसाय में संघर्ष कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। आर्थिक परेशानियों की वजह से जातक के वैवाहिक जीवन में जहर घुल जाता है। मानसिक असंतुलन और शारीरिक व्याधियां के कारन जातक समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है।

३. वासुकी कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हों तो वासुकी कालसर्प योग बनता है। ऐसा जातक भाई-बहनों एवं अन्य पारिवारिक सदस्यों से परेशान रहता है। रिश्तेदार एवं मित्रों से उसे धोखा मिलता है। घर में सुख-शांति का अभाव रहता है। अधिक धन खर्च हो जाने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति भी असामान्य हो जाती है। आजीविका के लिए जातक को विशेष संघर्ष करना पड़ता है। जातक को कानूनी मामलों में विशेष रूप से नुकसान उठाना पड़ता है। जातक को नौकरी या व्यवसाय आदि के क्षेत्र में भी नुकसान उठाना पड़ता है। यदि जातक अपने जन्म स्थान से दूर जाकर कार्य करें तो अधिक सफलता मिलती है। लेकिन सब कुछ होने के बाद भी जातक अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। देरी से उत्तम भाग्य का निर्माण भी होता है।

४. शंखपाल कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में राहु चौथे स्थान में और केतु दशम स्थान में हो इसके बीच सारे ग्रह हों तो शंखपाल कालसर्प योग बनता है। इससे घर, जमीन, जायदाद, चल अचल संपत्ति एवं विद्या प्राप्ति संबंधी थोड़ी बहुत कठिनाइयां आती हैं और उससे जातक को कभी-कभी बेवजह चिंता घेर लेती है। जातक को माता से कोई न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है। जातक का वैवाहिक जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाता है। कार्य के क्षेत्रा में भी अनेक विघ्न आते हैं परन्तु वे सब विघ्न कालान्तर में नष्ट हो जाते हैं। बहुत सारे कार्यों को एक साथ करने के कारण जातक का कोई भी कार्य पूरा नहीं हो पाता है। इस योग के प्रभाव से जातक का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है। लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी जातक को व्यवसाय, नौकरी तथा राजनीति के क्षेत्रा में बहुत सफलताएं प्राप्त होती हैं और उसे सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी मिलती है।

५. पद्म कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में राहु पंचम व केतु एकादश भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। इसके कारण जातक के विद्याध्ययन में कुछ विघ्न अवश्य आते हैं। किसी भी कारन जातक को संतान विलंब से प्राप्त होती है। जातक का स्वास्थ्य भी असामान्य हो जाता है। इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में जातक को अपयश मिलने का भय बना रहता है। जातक का धन एवं सम्पत्ति मित्र एवं गुप्त शत्रू लूट लेते हैं। जातक को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। जातक अपनी वृध्दावस्था को लेकर चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है कि यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है। समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है।

६. महापद्म कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक शत्रु विजेता होता है। वह विदेशों से व्यापार कर लाभ कमाता है लेकिन बाहर अधिक रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग के जातक को धन या सुख में से किसी एक का चुनाव कर लेना चाहिए। इस योग के कारण कई बार अपनो द्वारा धोखा खाने के कारण उनके मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन में शत्रुता पाल लेता है। जातक का चरित्र भी बहुत संदेहास्पद हो जाता है जिससे उसके धर्म की हानि भी हो सकती है। ऐसे जातक की वृध्दावस्था कष्टप्रद होती है। परन्तु जातक के जीवन में एक अच्छा समय आता है और वह एक अच्छा दलील देने वाला वकील अथवा तथा राजनीति के क्षेत्रा में सफलता पाने वाला नेता होता है।

  ७. तक्षक कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातक को या तो उसे पैतृक संपत्तिा मिलती ही नहीं अगर मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है या बर्बाद कर देता है। ऐसे जातक प्रेम संबंधों में भी असफल होते हैं। वैवाहिक जीवन इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि एक दुसरे से अलग होने की सम्भावना बन जाती है। साझेदारी में उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शत्रू षड़यंत्रों का शिकार बनना पड़ता है। जुए, सट्टे वलाटरी की प्रवृत्तिा उस पर हावी रहती है जिससे वह बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता है। संतान हीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर कष्ट देती रहती है। उसे गुप्तरोग की पीड़ा भी झेलनी पड़ती है। किसी को दिया हुआ धान भी उसे समय पर वापस नहीं मिलता।

८. कर्कोटक कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातकों के भाग्योदय में इस योग की वजह से कई रुकावटें आती हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। ऐसे जातक को उच्च पद से निम्न पद पर काम करने का भी दंड मिलता है। पैतृक संपत्ति एवं व्यापार से भी ऐसे जातकों को मनोनुकूल लाभ नहीं मिल पाता। कठिन परिश्रम के बावजूद उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता। मित्रों से धोखा, शत्रु षड़यंत्र, शारीरिक रोग व मानसिक परेशानियों से व्यथित जातक को अपने कुटुंब व रिश्तेदारों के बीच भी सम्मान नहीं मिलता। मुंहफट होने के कारन उसे कई झगड़ों में फंसना पड़ता है। उसका उधार दिया पैसा कभी वापिस नहीं आता। अकाल मृत्यु का भय जातक को बराबर बना रहता है।

९. शंखचूड़ कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ कालसप्र योग बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं। नौकरी में प्रोन्नति, व्यापर में प्रगति तथा पढ़ाई-लिखाई में वांछित सफलता मिलने से जातक को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है क्योंकि वह अपनो का भी हिस्सा छिनना चाहता है और अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है। जातक को अपने अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण यह सारी समस्या झेलनी पड़ती है। मुकदमेंबाजी में उसका अधिक धन खर्च होता रहता है। उसे पिता का सुख तो बहुत कम मिलता ही है वहीं ननिहाल व बहनोइयों से भी छला जाता है। उसका वैवाहिक जीवन मतभेद एवं कष्टों से भर जाता है।

   १०. घातक कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में केतु चतुर्थ तथा राहु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं। जातक के जीवन में सुख की कमी रहती है। जातक का वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं रहता। व्यवसाय के क्षेत्रा में उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परन्तु व्यवसाय व धन की कोई कमी नहीं होती है। नौकरी पेशा वाले जातकों को उच्च पद की प्राप्ति नहीं होती और जीवन में निम्न पद पर काम करना पड़ता है। साझेदारी के काम में भी घाटा व अस्थिरता उसे कष्ट पहुंचाते रहते हैं। ऐसे जातक मित्रों से भी धोखा खाते हैं। परन्तु ऐसे जातक राजनैतिक क्षेत्रा में बहुत सफलता प्राप्त करते है। इस योग में उत्पन्न जातक यदि माँ की सेवा करे तो उत्तम घर व सुख की प्राप्ति होता है।

११. विषधार कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। जातक को शिक्षा प्राप्त करने में आंशिक बाधाओं की उपस्थित होता है। जातक की स्मरण शकित काम होती है और उच्च शिक्षा प्राप्त करने में बाधाएं उत्पन होती रहती हैं। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ के साथ साथ हानि के योग भी होते हैं। चाचा, तया व चचेरे भाइयों से मनमुटाव रहता है। परन्तु बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है। इस योग के कारण जातक अपने जन्म स्थान से बहुत दूर निवास करता है या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करता रहता है। धन और सम्पत्तिा को लेकर संघर्ष व बदनामी दोनों की स्थिति बनी रहती है। उसे अपना सदैव लाभ दिखलाई देता है पर लाभ मिल नहीं पाता। संतान पक्ष से भी परेशानी उठानी पड़ती है। इस जातक के जीवन का अंत रहस्यमय ढंग से होता है।

१२. शेषनाग कालसर्प योग :

जब जन्म कुंडली में केतु छठे और राहु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग कालसर्प योग बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों की मनोकामनाएं सदैव देर से ही पूरी होती हैं। ऐसे जातकों को अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए अपने जन्मस्थान से दूर जाना पड़ता है और वही बाध्य हो कर रहना पड़ता है। ऐसे जातक को शत्रु षड़यंत्रों, मुकदमे बाजी शारीरिक व मानसिक कष्टों से बहुत परेशानी मिलती है। आम लोगों की नजर में उसका जीवन बहुत रहस्यमय बना रहता है। इनका काम करने का ढंग सबसे अलग होता है। बार बार बदनामी का कींचड़ जातक पर उशाला जाता है। ऐसा जातक हमेशा लोगों का देनदार बना रहता है क्यूंकि इनका खर्च आमदनी से अधिक होता है। ऐसे जातक को मरणोपरांत विशेष ख्याति प्राप्त होती है।

 

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ज्योतिष आचार्या
ममता वशिष्ट
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
कालका ज्योतिष अनुसन्धान संसथान

 

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